3/08/2008

तमाशा है महिला दिवस, क्यों नहीं करते अपने घर की स्त्रियों को आजाद?

साल के एक दिन केवल याद करने के लिए है महिला दिवस। अगर ऐसा न होता तो जो मर्द महिला दिवस के बारे में लिखते हैं, वो अपने घरों में अपनी महिलाओं--मां, बेटियों, पत्नी....को कभी कैद करके नहीं रखते। ये तो कैद ही है ना...कि तुम कहां गई थी, किससे बात कर रही थी, क्या पहन रखा है, छत पर क्यों खड़ी थी, टाइम से खाना क्यों नहीं बनाया, तुमने क्यों सब खा लिया, सड़क पर वहां क्या कर रही थी, घर देर से क्यों लौटी, किसका फोन आया था, इतनी देर तक क्यों सोती रही.....

सैकड़ों सवाल इसी तरह के मर्दों की जुबान से निकलते हैं और स्त्रियों को एक सवाल के रूप में खड़ा कर देते हैं। उनकी आत्मा धीरे धीरे इन सवालों के अनुरूप बनने के लिए तैयार होने लगती है। इस प्रकार बन जाती है एक ऐसी स्त्री जो खुद होते हुए भी खुद नहीं होती। महिला दिवस पर इन तमाशाइयों से केवल एक सवाल करना चाहिए। केवल एक सलाह बोलना चाहिए....आप अपने घर में कृपया अपनी महिलाओं को आजाद कर दो, उन्हें पुरुषों जैसी छूट और अधिकार दे दो, उन्हें रोको टोको मत, वो समझदार हैं, उन्हें खुद पता है कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।

सेक्स और शरीर की पर्यायवाची बन चुकी स्त्रियों को मुक्ति तभी मिलेगी जब वो सेक्स और शरीर से उपर उठें और यह तभी संभव है जब वो अपने पैरों पर, अपने कदमों पर, अपने दिमाग के आधार पर जीना, चलना, बोलना और लड़ना सीख लें।

नारेबाजी करने वाले पुरुषों, बौद्धिकता झाड़ने वाले विद्वानों, खुद को सहज और सरल बताने वाले मर्दों से अनुरोध है कि जितना वो अपने बेटे को प्यार देते हैं, जितना वो अपने पुत्र को छूट देते हैं, जितना वो अपने लाडले के लिए चिंतित रहते हैं, बस....उतना ही, न उससे ज्यादा और न उससे कम, अपनी बिटिया, अपनी पत्नी, अपनी बहन और अपनी मां के लिए करें। तभी हम सही मायनों में महिला दिवस को सार्थकता प्रदान करेंगे।

सभी साथियों को महिला दिवस की शुभकामनाएं देते हुए अंत में रघुवीर सहाय की चार लाइनों को सिर के बल खड़ाकर आठ दस लाइनें लिखना चाहूंगी....

मत पढिए गीता
मत बनिए सीता
मत स्वीकार कीजिए
किसी मूर्ख की बनना परिणिता
मत पकाइये भर भर तसला भात
मत खाइए सब कुछ करके
भी लात
आपही के हाथ में है
आपकी शान
आपको ही बचानी है खुद
की आन
हर पल, हर पग पर लड़ना पड़े
तो लड़िए
हर चीज के लिए कहना पड़े
तो कहिए
बहुत सुना, बहुत रोया, बहुत सोचा
अब चलिए
बहुत सहा, बहुत झेला, बहुत सीखा
अब करिए
निकलिए दर ओ दीवार के पार
दूर तक फैली है धरती
दूर तक फैला है आसमान
छू लो चूम लो उस तारे को
जो अकेले में भी चकमक
अड़ा है, खड़ा है बनकर महान


आपकी
गंदी लड़की

12 comments:

उन्मुक्त said...

हमारी सबसे बड़ी कमी यही है कि हम बातें बहुत करते हैं पर उसे अपने जीवन में नहीं निभाते। महिला दिवस पर महिला अधिकारों के बारे में की गयी बातें भी इसी में शामिल हैं।
महात्मा गांधी की सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि वे जो कहते थे वे उसे अपने जीवन में उतारते थे।

media mantra said...

गंदी लड़की, तुमने वो चिनगारी भड़का दी है जो हिंदुस्तान की लड़कियों को एक दिन गंदे लड़कों के बरक्स ला खड़ा करेगी। तुम्हारा कांसेप्ट क्रांतिकारी है। मैं एक गंदा लड़का हूं... और चाहता हूं कि मेरे घर परिवार के बाहर की सभी लड़कियां गंदी हों तो बस मज़ा आ जाए। तुम्हारे ब्लॉग्स पढ़कर मुझे पता चला कि लड़कियां गंदी हो ही नहीं सकतीं.. और ना ही होती हैं। जबकि उन्हें होना चाहिये... लड़कों की तरह... क्योंकि लड़के गंदे होते हैं। अब मुझे मलाल होने लगा है कि मैं लड़का क्यों हूं। लड़का हूं इसलिए गंदा होकर भी वो सबकुछ हासिल नहीं होता जो गंदी लड़की होने पर मुझे हासिल हो सकता था। लड़की होता और गंदी होता तो मुझे भी महिला दिवस की बधाइयां मिलतीं जिसकी ना तो मुझे ज़रूरत है ना गंदी लड़कियों की। क्योंकि दिवस तो होते ही हैं उन बातों के लिए जो कमज़ोर होती हैं.. जिन्हें सहारे की ज़रूरत होती है। लेकिन सच कहा तुमने... एक तो हम लड़के गंदे हैं, दूसरे हम सवाल भी करते हैं। गंदी लड़की तुम वाकई गंदे लड़कों से भी गंदी हो.. और बेहतर हो कि दुनिया की दूसरी लड़कियां तुमसे भी ज़्यादा गंदी बनकर दिखलाएं तो महिला दिवस जैसी चीज़ की ज़रूरत ही ना पड़े।

media mantra said...

गंदी लड़की, तुमने वो चिनगारी भड़का दी है जो हिंदुस्तान की लड़कियों को एक दिन गंदे लड़कों के बरक्स ला खड़ा करेगी। तुम्हारा कांसेप्ट क्रांतिकारी है। मैं एक गंदा लड़का हूं... और चाहता हूं कि मेरे घर परिवार के बाहर की सभी लड़कियां गंदी हों तो बस मज़ा आ जाए। तुम्हारे ब्लॉग्स पढ़कर मुझे पता चला कि लड़कियां गंदी हो ही नहीं सकतीं.. और ना ही होती हैं। जबकि उन्हें होना चाहिये... लड़कों की तरह... क्योंकि लड़के गंदे होते हैं। अब मुझे मलाल होने लगा है कि मैं लड़का क्यों हूं। लड़का हूं इसलिए गंदा होकर भी वो सबकुछ हासिल नहीं होता जो गंदी लड़की होने पर मुझे हासिल हो सकता था। लड़की होता और गंदी होता तो मुझे भी महिला दिवस की बधाइयां मिलतीं जिसकी ना तो मुझे ज़रूरत है ना गंदी लड़कियों की। क्योंकि दिवस तो होते ही हैं उन बातों के लिए जो कमज़ोर होती हैं.. जिन्हें सहारे की ज़रूरत होती है। लेकिन सच कहा तुमने... एक तो हम लड़के गंदे हैं, दूसरे हम सवाल भी करते हैं। गंदी लड़की तुम वाकई गंदे लड़कों से भी गंदी हो.. और बेहतर हो कि दुनिया की दूसरी लड़कियां तुमसे भी ज़्यादा गंदी बनकर दिखलाएं तो महिला दिवस जैसी चीज़ की ज़रूरत ही ना पड़े।

media mantra said...

गंदी लड़की, तुमने वो चिनगारी भड़का दी है जो हिंदुस्तान की लड़कियों को एक दिन गंदे लड़कों के बरक्स ला खड़ा करेगी। तुम्हारा कांसेप्ट क्रांतिकारी है। मैं एक गंदा लड़का हूं... और चाहता हूं कि मेरे घर परिवार के बाहर की सभी लड़कियां गंदी हों तो बस मज़ा आ जाए। तुम्हारे ब्लॉग्स पढ़कर मुझे पता चला कि लड़कियां गंदी हो ही नहीं सकतीं.. और ना ही होती हैं। जबकि उन्हें होना चाहिये... लड़कों की तरह... क्योंकि लड़के गंदे होते हैं। अब मुझे मलाल होने लगा है कि मैं लड़का क्यों हूं। लड़का हूं इसलिए गंदा होकर भी वो सबकुछ हासिल नहीं होता जो गंदी लड़की होने पर मुझे हासिल हो सकता था। लड़की होता और गंदी होता तो मुझे भी महिला दिवस की बधाइयां मिलतीं जिसकी ना तो मुझे ज़रूरत है ना गंदी लड़कियों की। क्योंकि दिवस तो होते ही हैं उन बातों के लिए जो कमज़ोर होती हैं.. जिन्हें सहारे की ज़रूरत होती है। लेकिन सच कहा तुमने... एक तो हम लड़के गंदे हैं, दूसरे हम सवाल भी करते हैं। गंदी लड़की तुम वाकई गंदे लड़कों से भी गंदी हो.. और बेहतर हो कि दुनिया की दूसरी लड़कियां तुमसे भी ज़्यादा गंदी बनकर दिखलाएं तो महिला दिवस जैसी चीज़ की ज़रूरत ही ना पड़े।

media mantra said...

गंदी लड़की, तुमने वो चिनगारी भड़का दी है जो हिंदुस्तान की लड़कियों को एक दिन गंदे लड़कों के बरक्स ला खड़ा करेगी। तुम्हारा कांसेप्ट क्रांतिकारी है। मैं एक गंदा लड़का हूं... और चाहता हूं कि मेरे घर परिवार के बाहर की सभी लड़कियां गंदी हों तो बस मज़ा आ जाए। तुम्हारे ब्लॉग्स पढ़कर मुझे पता चला कि लड़कियां गंदी हो ही नहीं सकतीं.. और ना ही होती हैं। जबकि उन्हें होना चाहिये... लड़कों की तरह... क्योंकि लड़के गंदे होते हैं। अब मुझे मलाल होने लगा है कि मैं लड़का क्यों हूं। लड़का हूं इसलिए गंदा होकर भी वो सबकुछ हासिल नहीं होता जो गंदी लड़की होने पर मुझे हासिल हो सकता था। लड़की होता और गंदी होता तो मुझे भी महिला दिवस की बधाइयां मिलतीं जिसकी ना तो मुझे ज़रूरत है ना गंदी लड़कियों की। क्योंकि दिवस तो होते ही हैं उन बातों के लिए जो कमज़ोर होती हैं.. जिन्हें सहारे की ज़रूरत होती है। लेकिन सच कहा तुमने... एक तो हम लड़के गंदे हैं, दूसरे हम सवाल भी करते हैं। गंदी लड़की तुम वाकई गंदे लड़कों से भी गंदी हो.. और बेहतर हो कि दुनिया की दूसरी लड़कियां तुमसे भी ज़्यादा गंदी बनकर दिखलाएं तो महिला दिवस जैसी चीज़ की ज़रूरत ही ना पड़े।

media mantra said...

गंदी लड़की, तुमने वो चिनगारी भड़का दी है जो हिंदुस्तान की लड़कियों को एक दिन गंदे लड़कों के बरक्स ला खड़ा करेगी। तुम्हारा कांसेप्ट क्रांतिकारी है। मैं एक गंदा लड़का हूं... और चाहता हूं कि मेरे घर परिवार के बाहर की सभी लड़कियां गंदी हों तो बस मज़ा आ जाए। तुम्हारे ब्लॉग्स पढ़कर मुझे पता चला कि लड़कियां गंदी हो ही नहीं सकतीं.. और ना ही होती हैं। जबकि उन्हें होना चाहिये... लड़कों की तरह... क्योंकि लड़के गंदे होते हैं। अब मुझे मलाल होने लगा है कि मैं लड़का क्यों हूं। लड़का हूं इसलिए गंदा होकर भी वो सबकुछ हासिल नहीं होता जो गंदी लड़की होने पर मुझे हासिल हो सकता था। लड़की होता और गंदी होता तो मुझे भी महिला दिवस की बधाइयां मिलतीं जिसकी ना तो मुझे ज़रूरत है ना गंदी लड़कियों की। क्योंकि दिवस तो होते ही हैं उन बातों के लिए जो कमज़ोर होती हैं.. जिन्हें सहारे की ज़रूरत होती है। लेकिन सच कहा तुमने... एक तो हम लड़के गंदे हैं, दूसरे हम सवाल भी करते हैं। गंदी लड़की तुम वाकई गंदे लड़कों से भी गंदी हो.. और बेहतर हो कि दुनिया की दूसरी लड़कियां तुमसे भी ज़्यादा गंदी बनकर दिखलाएं तो महिला दिवस जैसी चीज़ की ज़रूरत ही ना पड़े।

media mantra said...

गंदी लड़की, तुमने वो चिनगारी भड़का दी है जो हिंदुस्तान की लड़कियों को एक दिन गंदे लड़कों के बरक्स ला खड़ा करेगी। तुम्हारा कांसेप्ट क्रांतिकारी है। मैं एक गंदा लड़का हूं... और चाहता हूं कि मेरे घर परिवार के बाहर की सभी लड़कियां गंदी हों तो बस मज़ा आ जाए। तुम्हारे ब्लॉग्स पढ़कर मुझे पता चला कि लड़कियां गंदी हो ही नहीं सकतीं.. और ना ही होती हैं। जबकि उन्हें होना चाहिये... लड़कों की तरह... क्योंकि लड़के गंदे होते हैं। अब मुझे मलाल होने लगा है कि मैं लड़का क्यों हूं। लड़का हूं इसलिए गंदा होकर भी वो सबकुछ हासिल नहीं होता जो गंदी लड़की होने पर मुझे हासिल हो सकता था। लड़की होता और गंदी होता तो मुझे भी महिला दिवस की बधाइयां मिलतीं जिसकी ना तो मुझे ज़रूरत है ना गंदी लड़कियों की। क्योंकि दिवस तो होते ही हैं उन बातों के लिए जो कमज़ोर होती हैं.. जिन्हें सहारे की ज़रूरत होती है। लेकिन सच कहा तुमने... एक तो हम लड़के गंदे हैं, दूसरे हम सवाल भी करते हैं। गंदी लड़की तुम वाकई गंदे लड़कों से भी गंदी हो.. और बेहतर हो कि दुनिया की दूसरी लड़कियां तुमसे भी ज़्यादा गंदी बनकर दिखलाएं तो महिला दिवस जैसी चीज़ की ज़रूरत ही ना पड़े।

Anonymous said...

गंदी लड़की, तुमने वो चिनगारी भड़का दी है जो हिंदुस्तान की लड़कियों को एक दिन गंदे लड़कों के बरक्स ला खड़ा करेगी। तुम्हारा कांसेप्ट क्रांतिकारी है। मैं एक गंदा लड़का हूं... और चाहता हूं कि मेरे घर परिवार के बाहर की सभी लड़कियां गंदी हों तो बस मज़ा आ जाए। तुम्हारे ब्लॉग्स पढ़कर मुझे पता चला कि लड़कियां गंदी हो ही नहीं सकतीं.. और ना ही होती हैं। जबकि उन्हें होना चाहिये... लड़कों की तरह... क्योंकि लड़के गंदे होते हैं। अब मुझे मलाल होने लगा है कि मैं लड़का क्यों हूं। लड़का हूं इसलिए गंदा होकर भी वो सबकुछ हासिल नहीं होता जो गंदी लड़की होने पर मुझे हासिल हो सकता था। लड़की होता और गंदी होता तो मुझे भी महिला दिवस की बधाइयां मिलतीं जिसकी ना तो मुझे ज़रूरत है ना गंदी लड़कियों की। क्योंकि दिवस तो होते ही हैं उन बातों के लिए जो कमज़ोर होती हैं.. जिन्हें सहारे की ज़रूरत होती है। लेकिन सच कहा तुमने... एक तो हम लड़के गंदे हैं, दूसरे हम सवाल भी करते हैं। गंदी लड़की तुम वाकई गंदे लड़कों से भी गंदी हो.. और बेहतर हो कि दुनिया की दूसरी लड़कियां तुमसे भी ज़्यादा गंदी बनकर दिखलाएं तो महिला दिवस जैसी चीज़ की ज़रूरत ही ना पड़े।

Anonymous said...

प्रत्यक्षा पर एक पोस्ट है


जैसा बे-टैग मैं जीना चाहती हूँ
(एक नॉन पतित औरत की डायरी के पन्ने)

लेकिन मैं पतनशील नहीं बनना चाहती । पतित तो बिलकुल नहीं । मैं सिर्फ मैं बनना चाहती हूँ , अपनी मर्जी की मालिक , अपने फैसले लेने की अधिकारी , चाहे गलत हो या सही , अपने तरीके से जीवन जीने की आज़ादी । किसी भी शील से परे । किसी भी टैग के परे । मैं अच्छी औरत बुरी औरत नहीं बनना चाहती । मैं सिर्फ औरत रहना चाहती हूँ , जीवन डिग्निटी से जीना चाहती हूँ , दूसरों को क्म्पैशन और समझदारी देना चाहती हूँ और उतना ही उनसे लेना चाहती हूँ । मैं नहीं चाहती कि किसी कोटे से मुझे शिक्षा मिले , नौकरी मिले , बस में सीट मिले , क्यू में आगे जाने का विशेष अधिकार मिले । मैं देवी नहीं बनना चाहती , त्याग की मूर्ति नहीं बनना चाहती , अबला बेचारी नहीं रहना चाहती । मैं जैसा पोरस ने सिकंदर को उसके प्रश्न “तुम मुझसे कैसे व्यवहार की अपेक्षा रखते हो ‘ के जवाब में कहा था ,” वैसा ही जैसे एक राजा किसी दूसरे राजा के साथ रखता है , बस ठीक वैसा ही व्यवहार मेरी अकाँक्षाओ में है , जैसे एक पुरुष दूसरे पुरुष के साथ रखता है जैसे एक स्त्री दूसरी स्त्री के साथ रखती है , जैसे एक इंसान किसी दूसरे इंसान के साथ पूरी मानवीयता में रखता है ।

मैं दिन रात कोई लड़ाई नहीं लड़ना चाहती । मैं दिन रात अपने को साबित करते रहने की जद्दोज़हद में नहीं गुज़ारना चाहती । मैं अपना जीवन सार्थक तरीके से अपने लिये बिताना चाहती हूँ , एक परिपूर्ण जीवन जहाँ परिवार के अलावा मेरे खुद के अंतरलोक में कोई ऐसी समझ और उससे उपजे सुख की नदी बहती हो , कि जब अंत आये तो लगे कि समय ज़ाया नहीं किया ,कि ऊर्जा व्यर्थ नहीं की , कि जीवन जीया ।

मैं प्रगतिशील कहलाने के लिये पश्चिमी कपड़े पहनूँ , गाड़ी चलाऊँ , सिगरेट शराब पियूँ , देर रात आवारागर्दी करूँ ऐसे स्टीरियोटाइप में नहीं फँसना चाहती । मैं ये सिर्फ तब ही करना चाहूँगी जब ये करना मेरी मर्जी में होगा , सिर्फ किसी और के बनाये ढाँचे में फिट होने या मात्र फॉर द सेक तोड़ फोड़ करने के लिये नहीं । मेरे चुनाव मेरे अपने होंगे किसी और के थोपे हुये नहीं । मेरे रास्ते मेरे होंगे , उनके काँटे भी मेरे , फूल तो मेरे ही । पुरुष के ही बनाये मापदंड से खुद को नहीं आंकू । मैंने अपनी मर्जी का किया तो पुरुष मुझे गलत समझेगा पतन शील समझेगा तो मैं पतनशील ही सही वाला रवैया भी मेरा नहीं । ऐसा जैसे लो सिर्फ तुम्हें दिखाने के लिये मैं ऐसी बनी , विरोध करने के लिये मैं ऐसी बनी ।

मैं अपनी मिट्टी खुद गढ़ना चाहती हूँ , अपनी मिट्टी , अपना चाक और खुद ही कुम्हार भी। बिना शोर शराबे के , बिना हीलहुज्जत के । आराम से , शाँति से , इज़्ज़त से । आप दबेंगे आपको दबाया जायेगा । आप लड़ेंगे आपको हराया जायेगा । मैं अपने आप को इस निरर्थक लड़ाई से ऊपर उठाऊँगी । ऐसे जीयूँगी जैसे जीवन ऐसे ही जीने के लिये बना था

Anonymous said...

waise alag rasta akhtiyar karne wala kabhi nahin bachta jab tak wo apnon sa group nahin bana leta chaho to darvin ki nazar se dekhlo yaa hargovind khurana ki yaa fir Insteen ki nazar se yaa fir discovry chanel yaa jeogrophy par. akela chala to mara, par akela chalkar apnon jaisa group taiyaar karne wala tarakki karta hai. so wakt par ganda main bhi hun, wakt par gandi ladki aap bhi hai par hamesha nahin. aap log samaj or purush ko kyon dosh dete hain. apne papa ki bat aapko purush samajh ki rukawat jaan padti hai to ham ladkon ko bhi unhi papa se rok-tok -dant-pitai-tane-tohmat-nikammatamga
-ladkibaaz-aawara sunna padti hai. to ham bhi pitaji or unke doston ko purushon ka thekedar samajhkar unke khilaf blog likh den. aare aap gandi hain to aap ke umar ke ladkon ko to aapse lagav ho hi jayega fir unpar bhi rok-tok ki tohmat kyon ?

Anonymous said...

R C SHARMA SOCIALIST[GUNA MP]MAHILAO NE SWAMSIDHA BANKAR BURA HASHRA KARVA RAHI HAI .KYO NA BURAIYAO KA LOKLAJ RAKHKAR SUDHAR.KARE.

Anonymous said...

Mahilaon ko jyda ajadi nahi deni chahiye, job to bilkul nahi karvani chahiye, lanat hai un mardon ko jo ghar chalane ke liye ladkiyon se job krvate hai, doob maro chulu bhar pani me jinki bahu betiyan kamane jati hai.lekin mahilon ke education jaruri hai,ghar me pyar jaruri hai, lekin aajadi ke naam pr khula chor dena galat hai, haad to un ma baap ne Kr di jinki betiyan kacha pahan Kr ghumti hai, aajadi ka matlab ye nahi ke kuch bhi pahan lo,boyfriend ke sath ghumo,