मेरी दोस्तों, सहेलियों के चेहरे पर अक्सर एक अनजानी चुप्पी छाई रहती है, जब वो नितांत अकेले में होती हैं, और मैं उन्हें तब अक्सर ध्यान से देखती रहती हूँ, सोचती हूँ कि वो वही सब सोच रही होंगी जो मैं अकेले में सोचा करती हूँ.
अपना भविष्य, अपना वर्तमान, अपनी दिक्कतें, अपने ग़म, अपनी तकलीफें, अपने लिए सुने हुवे ताने, कसे हुवे फिकरे, घूरती हुयी ढेरों आँखें, कचोटती निगाहें........शरीर की कमजोरी, खून और माहवारी की दुश्वारियाँ, घर वालों की उम्मीदें....उफ़ मार डालेंगी ये सब चीजें, ये पहाड़ सा भार, समाज और परिवार का.
कितनी जल्दी दिमाग से बूढी हो गयी हैं हम लडकियां अपनी जवान जिस्म को संभाल के ढोने की कोशिश करते हुवे....जाने कौन है इसके लिए जिम्मेदार पर जो भी है उसको माफ़ न करिये प्लीज़....उन कुत्त्तों शरीफ्जादों को..... कभी माफ़ न करना....और मैं भी नहीं करुँगी....
गन्दी